जबलपुर: राज्यपाल श्री ओ.पी. कोहली ने कहा कि पं. दीनदयाल उपाध्याय अपने तात्विक चिंतन के लिए जाने जाते हैं। उनका एकात्म मानव दर्शन मात्र एक दर्शन नहीं वरन् आचरण एवं व्यवहार में उतारने की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। उपाध्याय जी ने जो सूत्र सामने रखे उनके आधार पर हमें अपने जीवन की प्रतिमा खड़ी करने के प्रयास करने चाहिए।
राज्यपाल श्री कोहली जी यहां रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर में पं. दीनदयाल उपाध्याय एवं राष्ट्रऋषि नानाजी देशमुख जन्म शताब्दी राष्ट्रीय व्याख्यानमाला के उद्घाटन सत्र में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। राज्यपाल ने मुख्यत: पं. दीनदयाल उपाध्याय के शिक्षा सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि श्री उपाध्याय का मानना था कि केवल स्कूल और कॉलेज में दी गई शिक्षा अपने आप में सम्पूर्ण नहीं होती। व्यापक समाज भी हमें शिक्षा देता है। स्कूली शिक्षा समग्र शिक्षा का बहुत छोटा हिस्सा होता है। व्यक्ति को परिवार, पड़ोस, मित्र, पर्यावरण और समाज भिन्न-भिन्न प्रकार से शिक्षित बनाते हैं। श्री कोहली ने कहा कि हमें इस धारणा से उबरना होगा कि शालेय शिक्षा ही समग्र शिक्षा है। उन्होंने कहा कि मौजूदा स्थितियों में माता-पिता के पास बच्चे से जुड़ने का समय नहीं होता, परिणामस्वरूप वह परिवार से मिलने वाली शिक्षा के स्त्रोत से कट जाता है। श्री कोहली ने कहा कि एक लोकतांत्रिक समाज में लोगों का शिक्षित होना जरूरी है तभी लोकतंत्र ठीक ढंग से चल सकता है। पं. उपाध्याय का भी यही विश्वास था इसीलिए उन्होंने लोक शिक्षा पर बल दिया है।
राज्यपाल श्री कोहली ने कहा कि हमें अपनी शिक्षा व्यवस्था को भारतीय स्वरूप देने की दिशा में पहल करना आवश्यक है। यह मान लेना उचित नहीं है कि बिना अंग्रेजी के उच्च शिक्षा नहीं दी जा सकती। श्री उपाध्याय का मानना था कि समाज और शिक्षाविद् मिलकर शिक्षा व्यवस्था का संचालन करें। शिक्षा राज्य नियंत्रित होने की बजाए समाज नियंत्रित होनी चाहिए। राज्यपाल ने कहा कि पं. उपाध्याय का विचार था कि शिक्षा पर सरकारी नियंत्रण कम से कम हो और समाज की अपनी पहल के माध्यम से शिक्षा का संचालन हो।
अपने उद्बोधन में श्री कोहली ने कहा कि दीनदयाल जी के एकात्म मानव दर्शन का मूल इस सत्य में निहित है कि इस सारे दृश्यमान जगत में दिखाई देने वाली विविधता के मूल में एकात्मता है। हमारे दर्शन में ईश्वर, परब्राहृ, परमात्मा सब एक हैं और सबमें व्याप्त है। यह जरूरी है कि हमारी शिक्षा हमें पर्यावरण के प्रति संवेदनशील बनाए। हमें चाहिए कि जितना हम प्रकृति का उपभोग करें उतना उसे वापस लौटाएं। दीनदयाल जी की मान्यता थी कि शिक्षा पर्यावरण-संवेदी हो क्योंकि पर्यावरण ही परमार्थ सिखाता है। श्री कोहली ने कहा कि स्वार्थ और परमार्थ दो प्रवृत्तियां हैं। हमें परहित की बात सोचना है क्योंकि यही परमार्थ है। प्रकृति हमारी सबसे बड़ी गुरू है क्योंकि वह हमें परमार्थ की भावना सिखाती है इसीलिए पं. उपाध्याय ने प्रकृति से सीखने पर जोर दिया है।
राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा मूलत: लोक संवेदी होनी चाहिए। तात्पर्य यह है कि सबसे निचली पायदान के लोगों तक उसकी पहुंच होनी चाहिए। जो शिक्षा निचली पायदान के लोगों के प्रति ममत्व और संवेदना के भाव नहीं जगाती ऐसी शिक्षा किस काम की। दीनदयाल जी ने दौड़ में पीछे रह गए व्यक्ति का ध्यान रखने पर जोर दिया है। शिक्षा तभी सार्थक है जब व्यक्ति वंचितों के प्रति मनुष्यता का भाव रखे और उनके दर्द को महसूस करे। अक्षर ज्ञान के साथ जीवन मूल्यों की भी शिक्षा दी जानी चाहिए। राज्यपाल ने कहा कि श्री उपाध्याय का मानना था कि शिक्षक का ध्येय जीवन-मूल्य व संस्कारों की शिक्षा देना होना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षा का स्वरूप भारतीय होना चाहिए। शिक्षा समरसता पैदा करने वाली हो तथा पर्यावरण के प्रति कोमलता जगाने वाली हो। राज्यपाल ने कहा कि दीनदयाल जी के चिंतन के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था में कुछ नयापन और थोड़े परिवर्तन लाने की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए। यही पं. दीनदयाल उपाध्याय के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
कार्यक्रम में सारस्वत अतिथि के रूप में अपने उद्गार व्यक्त करते हुए महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनीस ने कहा कि ईश्वर जिन पर भरोसा करता है उन्हें माता-पिता बनाता है और जिन पर बहुत भरोसा करता है उन्हें शिक्षक बनाता है। इस भरोसे पर खरा उतरना ही जीवन की सार्थकता है। शिक्षक वह है जो शिष्य के सामने के आकाश को बड़ा कर उसे फैलाव दे।जिस प्रकार मां नौ माह तक बच्चे को धारण करती है उसी प्रकार गुरू भी एक प्रकार से अपने शिष्य को धारण करता है। श्रीमती चिटनीस ने कहा कि हम वसुधैव कुटुम्बकम् की बात कहते हैं किन्तु अब यह धारणा बलवती होती जा रही है कि अपना परिवार ही संसार है। लोग तेजी से व्यक्तिवादी बनते जा रहे हैं। मौजूदा समय की सबसे बड़ी विडम्बना यह व्यक्तिवाद ही है किन्तु दीनदयाल जी का मानव एकात्म है। वह समाज, देश और दुनिया के साथ सतत् रूप से सम्बद्ध है और कभी असम्बद्ध नहीं होता।
श्रीमती चिटनीस ने कहा कि वह मां ही है जो परिवेश से बच्चे की पहचान कराती है। शिक्षा के संसार से बच्चे का पहला परिचय मां के माध्यम से ही होता है। यदि रोज मां खाना खिलाते वक्त बच्चे को कहानी न सुनाए तो निश्चय ही बच्चे का मन कमजोर होगा। उन्होंने कहा कि हमारे सामने बड़े प्रश्न हैं जिनका हल सिर्फ संस्थाएं नहीं निकाल सकती। पूर्व में मां के साथ-साथ नानी, दादी, बुआ सब बच्चे की देखभाल करते थे। आज के समय में परिस्थितियों में काफी बदलाव आ गया है। अपने भाषण में उन्होंने प्रोफेसर अमत्र्य सेन के शांति निकेतन के अनुभव का जिक्र करते हुए बताया कि श्री सेन ने कहा कि विचारों की स्पष्टता और मौलिकता ही प्राथमिक है प्राप्त अंक इसके बाद की बात है। श्रीमती चिटनीस ने यूनेस्को की रिपोर्ट से उद्धृत सात समस्याओं पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि भारत के पास वह दृष्टि है कि एकात्म मानव दर्शन के साथ हम अपने लक्ष्य को कामयाबी से हासिल कर सकेंगे।
इस मौके पर पं.दीनदयाल उपाध्याय शोध संस्थान के प्रधान सचिव श्री अतुल जैन ने कहा कि पं.दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानव दर्शन से जुड़े विषयों पर देशभर में विषय के मनीषियों द्वारा चर्चा हो। उन्होंने कहा कि पं.दीनदयाल उपाध्याय शोध संस्थान की स्थापना के बाद शनै:-शनै: संस्थान की दृष्टि ग्रामों के समग्र विकास पर केन्द्रित हुई। एकात्म मानव दर्शन को धरातल पर मूर्त रूप देने के लिए ईमानदार प्रयास किए गए हैं।
कार्यक्रम के आरंभ में राज्यपाल श्री ओ.पी. कोहली ने मां सरस्वती की मूर्ति पर माल्यार्पण कर दीप प्रज्जवलित किया। कुलपति प्रो. कपिल देव मिश्र ने शाल एवं श्रीफल से राज्यपाल और महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती चिटनीस का स्वागत किया। कुलपति प्रो. मिश्र ने स्वागत भाषण दिया। इस दौरान कुल सचिव डॉ बघेल भी मौजूद थे।
कार्यक्रम में कलेक्टर महेशचन्द्र चौधरी एवं एसपी डॉ. एम.एस. सिकरवार भी मौजूद थे।
[स्टार भास्कर -संवाददाता]
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