नई दिल्ली। मोदी सरकार ने अपनी तरह का पहला
‘स्वच्छ अखबार’ अभियान शुरू कर दिया है। इस
अभियान में उन 277 अखबारों की मान्यता खत्म कर
दी है जो केवल विज्ञापन लेने के लिए अखबार
प्रकाशित करते थे। पिछले एक साल में इन प्रकाशनों ने
करीब दो करोड़ रपए का विज्ञापन बटोरा है। एक-एक
प्रिंटिंग प्रेस से 70 अखबार छापे जा रहे हैं। सरकार
केवल आफिस कापी छापने वाले अखबारों से विज्ञापन
की राशि वापस लेने की कार्रवाई भी शुरू कर सकती है
और उन नौ प्रिंटिंग प्रेस के खिलाफ भी कार्रवाई हो
सकती है जो एक दिन में 70 से अधिक अखबार छाप रहे
थे।सामान्य तौर पर केंद्र सरकार और राज्य सरकारों
के विज्ञापन पाने के लिए कुछ लोग प्रिंटिंग प्रेस,
डीएवीपी और राज्यों के सूचना निदेशालयों के साथ
मिलकर केवल आधिकारिक कापी छापते हैं और उनको
दिखाकर विज्ञापन ले लेते हैं। डीएवीपी के नियम के
अनुसार प्रत्येक प्रकाशक को हर महीने अपने अंकों को
जमा करना होता है। छोटे अखबारों को सीए सर्टिफिकेट
देने की भी छूट है। प्रकाशक डीएवीपी में जमा करने
लायक ही अखबार छापते हैं और बाजार में उनकी
उपस्थिति नहीं होती है। सूचना एवं प्रसारण मंत्री एम
वेंकैया नायडू के निर्देश पर आरएनआई और डीएवीपी
से अधिकारियों ने कुछ प्रिंटिंग प्रेस और अखबारों के
कार्यालयों पर छापेमारी की। चार दिल्ली की और चार
लखनऊ की प्रिंटिंग प्रेसों से 70-70 अखबार छापे जा
रहे थे। एक प्रिंटिंग प्रेस को एक से अधिक अखबार
छापना भारी पड़ जाता है। ऐसे में 70 से अधिक अखबार
छापने पर डीएवीपी और आरएनआई ने 277 प्रकाशकों
और प्रिंटरों को नोटिस भेजा जिसमें से 118 ने सफाई
दी जबकि 159 ने नोटिस का जवाब ही नहीं दिया।
डीएवीपी ने इन अखबारों की मान्यता खत्म कर दी।
अब इन अखबारों को विज्ञापन नहीं दिया जाएगा।
सूत्रों का कहना है कि झूठे काजग-पत्रों के मार्फत
इम्पैनलमेंट कराने और विज्ञापन हासिल करने पर इनके
खिलाफ कार्रवाई होगी। इनसे विज्ञापन की राशि
वापस ली जा सकती है। इन अखबारों ने अकेले वर्ष
2015-16 के दौरान दो करोड़ रपए के विज्ञापन ले
लिए थे। डीएवीपी के जो लोग इस घपले में शामिल हैं
उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी।
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