जबलपुर :से करीब 35 किलोमीटर कटंगी मार्ग पर ककरेटा ग्राम में नदी के बीच विशालकाय पहाड़ को देवी का रूप मानकर भक्त परिवार सहित दूर दूर से दर्शन के लिए आते है मन्नत के अनुसार इन्हें पूजते है कहा जाता है, की जो निसंतान दम्पति द्वारा नाहन देवी के सिर्फ दर्शन मात्र से दम्पति
की झोली संतान से भर जाती है. ककरेटा ग्राम के राजेश सेंगर बताते है कि जब हिरन नदी का उद्गम हुआ तो वह अपनी वेग में विशाल पहाड़ को काटते हुए यहाँ से निकली और देवी स्वरुप
शिला बीच नदी में यू ही खड़ी रही कहा जाता है कि आजादी के पहले से यह प्रतिमा नदी के बीच यू ही खड़ी है. यह कथा प्रचलित है कहा जाता है की वर्षों पहले एक यहाँ एक बुजुर्ग
महिला ने एक -एक पत्थर इकठ्ठा कर रास्ता बनाया था जब महिला रास्ता बनाने के लिए पत्थर चुन रही थी तो उसे एक कन्या ने दर्शन दिया था उस महिला ने यह बात गाव n=में जाकर बताई जिसके बाद ककरेटा ग्राम के ग्रामीण जन उस देवी स्वरुप कन्या को देखने के लिए आये वह कन्या देखते ही देखते उस सिला के करीब पहुचते ही गायब हो गई उस दिन से वह स्थल नाहन देवी के नाम से प्रचलित हो गया ,उस समय यहाँ एक दिन का मेला लगता था बढते बढते यह सात दिनों का हो गया. ककरेटावासी बुजुर्ग बताते है उन्होंने जब से होशसंभाला जब से नाहन देवी के विशाल प्रतिमा को देखते आ रहे है, गाव वालों को मदद से ही वहा सड़क पानी बिजली की व्यवस्ता करवाई गई.
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