भोपाल:- प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी द्वारा चलाये गये स्वच्छता
अभियान को लेकर यूं तो राज्य में सफलता को
लेकर तरह-तरह की योजनायें चलाई जा रही हैं,
तो वहीं राज्य में लोगों के घरों में शौचालय बनाने
का काम भी बड़ी जोर शोर से जारी है लेकिन इन
शौचालय के निर्माण में जिस तरह का गोरखधंधा
चल रहा है, सरकारी स्तर पर बनाये जा रहे इन
शौचालयों की गुणवत्ता क्या है, यह तो उन्हें
देखकर ही नजर आती है, तो वहीं शौचालय जिस
आकार के बनाये जा रहे हैं वह इतने छोटै हैं कि कई
परिवार तो इन शौचालयों का उपयोग तक नहीं कर
पा रहे हैं तो वहीं राजधानी के वल्लभ भवन के
ठीक सामने इन शौचालयों के निर्माण में जिस
तरह का गोरधंधा चल रहा है वह भी अपने आपमें
अजीब है, राज्य सरकार द्वारा शौचालय निर्माण
का काम तो कराया जा रहा है लेकिन शौचालय के
गड्ढे हितग्राही को खादेने के लिए मजबूर किया
जा रहा है। कुल मिलाकर स्वच्छता अभियान के
नाम पर जिस तरह का गोरखधंधा इस प्रदेश में
चल रहा है वह अपने आपमे अजीब है, लोगों को
खुले में शौच न करने देने के लिये तमाम तरीके
अपनाये जा रहे हैं तो वहीं स्थिति यह है कि इन
शौचालयों के उपयोग के लिये लोगों को पर्याप्त
पानी तक उपलब्ध नहीं हो रहा है, यह स्थिति
प्रदेश के नागरिकों की नहीं बल्कि राजधानी भोपाल
सहित प्रदेश के जिलों में चल रहे ७७ प्रतिशत
स्कूलों की है जहाँ टायलेट में पानी की सुविधा तक
उपलब्ध नहीं है। चाइल्ड राइट एण्ड यू (क्राइ)
द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में यह बात सामने
आई यह सर्वे भोपाल सहित १३ जिलों के १९०
स्कूलों में किया गया, जिसमें भोपाल, छतरपुर,
दमोह, इंदौर, जबलपुर, खंडवा, मण्डला, रीवा,
सतना, शहडोल, शिवपुरी, उमरिया और विदिशा
जिले शामिल हैं इन जिलों के १४४ प्राइमरी और
४२ मिडिल स्कूलों में पढऩे वाले १४ हजार ९८३
बच्चों का सर्वे किया गया क्राइ की स्थानीय
निदेशक उत्तरी क्षेत्र सोहा मोइत्रा कहती हैं कि
१९० स्कूलों में किया गया सर्वेक्षण इनमें मौजूद
संसाधनों की विस्तृत तस्वीर प्रस्तुत करता है
आरटीआई को प्रभावी तरीके से प्रभावी तरीके से
लागू किये जाने की सलाह भी क्राइ ने स्कूल
शिक्षा विभाग को दी है, क्राइ के अनुसार राज्य
में आठ फीसदी स्कूलों में टायलेट नहीं हैं तो ४९
प्रतिशत टायलेट ऐसी हालत में हैं कि उनका
उपयोग ही नहीं किया जा सकता है। तो वहीं किसी
स्कूल में टायलेट साफ करने के लिये कर्मचारी की
भी व्यवस्था नहीं है यही नहीं इस सर्वेक्षण में
१४ प्रतिशत स्कूलों में अध्ययनरत छात्र-
छात्राओं के लिये पीने का शुद्ध पानी भी उपलब्ध
नहीं होता है। राज्य के १९० स्कूलों में से १८३
स्कूलों में अध्ययनरत छात्र-छात्राओं के लिये
बैठने के लिये बेंच तक की व्यवस्था नहीं है।
क्राइ के द्वारा कराये गये सर्वेक्षण में जहां ७७
फीसदी स्कूलों के टायलेट में पानी की सुविधा
उपलब्ध नहीं होने का खुलासा हुआ है तो वहीं यह
बात भी सामने आई कि पांच फीसदी स्कूल ऐसे हैं
जो सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे हैं ८९ प्रतिशत
स्कूलों में तो हैडमास्टर भी नहीं हैं तो सर्वेक्षण
के दौरान यह भी सामने आया कि हर स्कूल के
परिसर में मध्याह्न भोजन बनाने के लिये किचिन
होना चाहिये लेकिन सर्वेक्षण के दौरान २७
प्रतिशत स्कूलों में सही स्थान पर खाना नहीं
पकाया जा रहा है, खासतौर पर रसोई वाले स्थान
पर खाना बनाया जा रहा है, २४ प्रतिशत स्कूलों
की किचन बुरी स्थिति में है और चार प्रतिशत
स्कूलों में मध्याह्न भोजन तक नहीं दिया जा रहा
है। इस सर्वेक्षण से यह साफ जाहिर होता है कि
राज्य में जहां प्रतिवर्ष शिक्षा की गुणवत्ता
सुधारने के लिये करोड़ों रुपये खर्च किये जाने के
बावजूद भी राज्य के स्कूलों में बुनियादी
सुविधाओं का अभाव है।
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