स्टार भास्कर वेब टीम@ बसंत पंचमी हिंदू धर्म के त्योहार के रूप में पूरे देश में हर साल हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है. यह दिन देवी सरस्वती की आराधना से जोड़कर देखा जाता है. देश के विभिन्न हिस्सों में बसंत पंचमी पर देवी सरस्वती की मूर्ति प्रतिष्ठा का भी रिवाज है. विशेष तौर पर छात्रों, कलाकारों, संगीतकारों के लिए इस दिन का विशेष महत्व होता है. बसंत पंचमी को श्री पंचमी के नाम से भी जाना जाता है.
पश्चिम बंगाल और असम के इलाकों में इसे सरस्वती पूजा के नाम से ही जाना जाता है. दक्षिण भारतीय राज्यों में इस दिन को ‘विद्यारंभ’ के नाम से भी जाना जाता है. पश्चिम बंगाल के स्कूल-कॉलेज के अलावा घरों में भी लोग सरस्वती पूजा का भव्य आयोजन करते हैं.
बसंत पंचमी हर साल माघ मास की पंचमी तिथि को मनाई जाती है
हिंदू कैलेंडर के मुताबिक बसंत पंचमी हर साल माघ मास की पंचमी तिथि को मनाई जाती है. पंचमी तिथि से जुड़ी हुई एक पौराणिक कहानी है जिसका सरस्वती पूजा से जुड़ा विशेष महत्व है. इस संदर्भ में एक लोककथा है. कथा कुछ यूं है…
ये है बसंत पंचमी की कहानी
एक बार भगवान ब्रह्मा धरती पर विचरण करने के लिए निकले थे. इस दौरान जब उन्होंने मनुष्यों समेत जीव-जंतुओं को देखा तो वो नीरस और बेहद शांत दिखाई दिए. यह देखने के बाद ब्रह्मा जी को कुछ कमी महसूस हुई. सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से जल निकालकर पृथ्वी पर छिड़क दिया. जल छिड़कने के बाद उस जगह से चार भुजाओं वाली सुंदर स्त्री प्रकट हुई जिसके चार हाथ थे. एक हाथ में वीणा, एक में माला, एक में वर मुद्रा और एक में पुस्तक थी. ब्रह्माजी ने उन्हें ज्ञान की देवी के नाम से पुकारा.
बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती के जन्म की किंवदंति
ब्रह्मा जी की आज्ञा के मुताबिक देवी सरस्वती ने वीणा के तार झंकृत किए तो पृथ्वी का नीरस माहौल खुशी में बदल गया. मनुष्य बोलने लगे, जीव-जंतु प्रसन्न दिखने लगे, नदियां कलकल कर बहने लगीं. कहा जाता है कि तभी से देवी सरस्वती की ज्ञान और संगीत की देवी के तौर पर पूजा की जाने लगी. किंवदंतियों के मुताबिक देवी सरस्वती का जन्म बसंत पंचमी के दिन ही हुआ था. इसीलिए इस दिन उनकी पूजा का विशेष महत्व होता है.