असम : केंद्रीय और प्रांतीय सरकारों के खेल और
खिलाडियों की स्थिति को मजबूत करने की मंशा पर
उस वक्त सवालिया निशान लगाया जब मीडिया में
आई खबरों से इस बात का खुलासा हुआ है कि असम
की एक राष्ट्रीय स्तर आर्चरी गोल्ड मेडलिस्ट
खिलाड़ी पिछले तीन सालों से अपने परिवार का पेट
पालने के लिए असम के हावें के किनारे संतरे बेंचने पर
मजबूर है |
बता दें कि ताजे मामले में तीरंदाजी में असम राज्य
की राष्ट्रीय स्तर की गलोद मेडलिस्ट खिलाड़ी बुली
बासुमैत्री बीते 3 सालों से अपने परिवार के भरण
पोषण के लिए सड़क के किनारे संतरे बेंचने पर मजबूर
है | बासुमैत्री की यह हालत केंद्र सरकार और
राज्य की सरकारों के उन वादों की धज्जियाँ उड़ा रहा
है जिसमें यह कहा जाता है कि देश के सभी
खिलाडियों को सरकारी नौकरी दी जायेगी जिससे
उनकी स्थिति में सुधार किया जा सके और आने वाले
समय युवाओं का खेल के प्रति रुझान भी बढ़ सके |
लेकिन बासुमैत्री की हालत एक बार फिर सरकारों के
खोखले वादों की पोल खोल रही है |
बासुमत्री ने बताया कि उन्होंने ने नेशनल स्तर पर
तीरंदाजी प्रतियोगिता में भाग लेते हुए अनेकों मैडल
अपने नाम किये है और इन्ही मेडल्स के आधार पर
ही उन्होंने असम पुलिस में नौकरी के लिए आवेदन भी
किया था लेकिन आजतक उन्हें इस मामले में कोई भी
मदद नहीं मिल सकी है और न ही उन्हें नौकरी ही
मिली है आखिरी में मजबूरन उन्हें अपने परिवार का
भरण पोषण करने के लिए सड़क किनारे सनतरे बेंचने
प[आर मजबूर होना पडा है | बता दें कि बासुमैत्री
के परिवार में उनकी 2 बेटियां है जिनकी उम्र
क्रमशः 2 और 3 वर्ष है ।
हालाँकि अब मीडिया में आई ख़बरों के बाद असम की
सरकार ने इस बात का एलान किया है कि बासुमैत्री
को अगले महीने असम में तीरंदाजी टीम का कोच
नियुक्त कर दिया जाएगा और उसके लिए जल्द ही
शार्ट टर्म ट्रेनिंग के लिए पंजाब भी भेजा जाएगा |
यह बातें असम के खेल मंत्री ने कही है | आने वाले
समय में क्या यह सच में भी होता है या फिर
सरकारों की तरफ से किये जाने वाले अनेकों और अंक
वादों की तरह से यह भी समय के गर्भ में समां
जाएगा यह तो वक्त ही बताएगा बहरहाल राष्ट्रीय
स्तर के खिलाड़ियों की यह हालत देखकर तो यही
कहा जा सकता है कि आने वाले समय में भी भारत की
खेलों और भारतीय खिलाड़ियों की स्थिति मकोई
विशेष सुधार होता नहीं दिख रहा है |